राज्य में कोरोना से सिर्फ 19 मौतें, बावजूद यहां हर पंचायत में बनाया जा रहा 10 बेड का कोविड केयर सेंटर, ये मार्च 2021 तक रहेंगे

लगातार 20 साल से आपदा से लड़ने, जूझने और उससे मिली सीख का ही नतीजा है कि ओडिशा में कोरोना से लड़ाई अलग अंदाज में चल रही है। मरीज कम हैं फिर भी कड़ाऔर लंबालॉकडाउन है। राज्य के दो गंजाम और खोरदा जिलों में 30 जून तक कम्प्लीट कर्फ्यू है। 12 तटीय जिलों में शनिवार औररविवार को लॉकडाउन रहता है। यह वह जिले हैं, जहां ओडिशा सरकार की नजर में कोरोना के ज्यादा केस हैं, जबकि देश के दूसरे राज्यों के जिलों में इससे कहीं ज्यादा मरीज हैं, फिर भी वहां काफी छूट है। ऐसा क्यों?

दरअसल, ओडिशा में आपदा प्रबंधन का मॉडल'जीरो कैजुएलिटी, एडवांस्ड प्लानिंग और कम्युनिटी कंट्रोल' पर टिका है। यहां कोरोना के खिलाफ भी लड़ाई की तैयारी साल भर की है। इन्हीं तैयारियों का परिणाम है कि राज्य में 21 जून तक सिर्फ 19मौतें हुईं, वह भी उनकी जो पहले से दूसरी गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे।

सरकार एक-एक केस मॉनिटर कर रही है, उसे डाक्युमेंट कर रही है। यहां कोरोना के केस छिपाए नहीं, बताए जाते हैं। राज्य में कम्युनिटी स्प्रेड अब तक नहीं हुआ है। ओडिशा में अब तैयारी यह हो रही है कि लॉकडाउन खुलेगा, तब क्या होगा?

ओडिशा सरकार का अनुमान है कि 15 जुलाई तक वह राज्य में कोविड के कर्व को फ्लैट करने में कामयाब हो जाएगी। प्रवासियों का आना-जाना थम जाएगा। सीएम नवीन पटनायक ने भी एनाउंस किया है कि पंचायतों के अस्थाईमेडिकल सेंटर जून अंत तक बंद हो जाएंगे। इसके बावजूद हर ब्लॉक में क्लस्टर क्वारैंटाइन सेंटर बना रहेगा। पूरे राज्य में करीब 800-900 ऐसे सेंटर मार्च 2021 तक चलेंगे।

ओडिशा में करीब 7 हजार पंचायतें हैं और हर पंचायत में 10-12 बेड के कोविड सेंटर बन रहे हैं।

लेकिन, तैयारी यहीं खत्म नहीं हो रहीं। 30 जून के बाद मार्च 2021 तक के लिए अब हर पंचायत में 10-12 बेड का 'कोविड केयर सेंटर' बन रहा है। ओडिशा में 6 हजार 798 पंचायतें हैं। यानी साल भर के लिए 70 हजार बेड 1 जुलाई से तैयार हो जाएंगे। किसी को कोविड का सिम्पट्म्सहोगा तो वह यहीं रहेगा।

कोविड केयर सेंटर में यदि किसी की तबियत बिगड़ती है तो सरपंच की सूचना पर तत्काल एंबुलेंस आएगी और डेडिकेटेड कोविड अस्पताल लेकर चली जाएगी। ओडिशा के हर जिले में एक डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल हैं। जहां ऑक्सीजन की सुविधा है।

इसके अलावा 6000 स्पेशलाइज्ड बेड वाले हॉस्पिटल हैं। सरकार ने 500 वेंटिलेटर का इंतजाम कर रखा है। स्वास्थ्य विभाग अतिरिक्त जरूरत का आकलन भी कर रहा है। तीन महीने के बाद क्या स्थिति होगी, उस पर काम शुरू हो गया है। प्रवासियों की वापसी की गति थमने के बावजूद 8 आईएएस अफसर दूसरे राज्य में रह रहे लोगों से लगातार कोऑर्डिनेट कर रहे हैं।

सरकार ने तैयारियों की मॉनिटरिंग के लिए 10 आईएएस अफसरों को फील्ड कोविड ऑब्जर्वर बनाया है। सबको दो से तीन जिले की जिम्मेदारी दी है, सभी स्थिति पर लगातार निगरानी रख रहे हैं, रिपोर्ट देते हैं। यह रिपोर्ट चीफ सेक्रेटरी हर दूसरे दिन रिव्यू करते हैं। मुख्यमंत्री के स्तर पर हर मंगलवार को रिव्यू होता है।

लोग बेपरवाह न हो जाएं, इसके लिए सरकार ने पूरे राज्य में दो दिन पहले ही नए सिरे से व्यापक स्तर पर इंटेंसिव एजुकेशन कैंपेन शुरू कियाहै। माइकिंग,एनिमेशन सीरीज बाजारोंमें दिखाई जा रही है। इस एनिमेटेड फिल्म में गांव का एक बदमाश लड़का लोगों से सवाल पूछता है, औरजवाब देता है।

वॉल पेंटिंग, मोबाइल में स्ट्रीमिंग की जा रही है। एसएमएस भेजे जा रहे हैं। यह सब इसलिए कि लोग बेपरवाह न हो जाएं। राज्य के सभी टेलीकॉम ऑपरेटर से सरकार का समझौता है कि यदि वह कोई भी डिजास्टर का मैसेज देती है तो ऑपरेटरों को इसे फ्री में ब्रॉडकास्ट करना है।

1 जुलाई से डेढ़ महीनों तक लगातार डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग होगी।

30 जून के बाद 45 दिनों तक लगातार डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग शुरू होगी। इसमें आशा, आंगनबाड़ी वर्कर, एएनएम बीमार और बुजुर्ग लोगों की जानकारी एकत्रित करेंगे। घर के लोगों को मैसेज भेजेंगे कि माता- पिता का कैसे ख्याल रखें। कोई तकलीफ है तो क्या करें। जरूरत पड़ने कहां टेस्ट के लिए जाना है।

स्टेट रिलीफ कमिश्नर प्रदीप कुमार जेना कहते हैं कि सीएम का आदेश है कि जराभी गलतीबर्दाश्त नहीं की जाएगी। लिहाजा हमने मध्य फरवरी से ही कोरोना पर काम शुरू कर दिया था। तब तक हमें पता लग गया था कि महामारी रोकने का इकलौता उपाय क्वारैंटाइन है।

कमिश्नर प्रदीप के मुताबिक, इसके बाद सेक्वारैंटाइन सेंटर की पहचान शुरू कर दी गई। स्कूलों में अतिरिक्त बाथरूम का निर्माण शुरू हो गया। सोशल डिस्टेंसिंग को देखते हुए 1-1 मीटर की दूरी पर नल लगाए गए। नहाने और पीने के पानी का अलग इंतजाम किया गया। हमें अनुमान था कि लॉकडाउन होगा।

रिवर्स माईग्रेशन होगा। हाई माइग्रेंट लोड जहां ज्यादा दिखा, वहां ज्यादा सेंटर बनाए। ओडिशा में यह सब तब हो रहा था, जब प्रदेश में एक भी मरीज नहीं था। देश में कोरोना के सिर्फ 80 मरीज थे। ओडिशा सरकार ने 13 मार्च को ही कोरोना को 'स्टेट डिजास्टर' घोषित कर दिया। 15 मार्च से 5 जिलों में सात दिन का लॉकडाउन किया। फिर, 14 जिलों में लॉकडाउन किया। गांव में लोगों को 4 महीनेका चावल दिया।

सूचना एवं जनसंपर्क सचिव संजय सिंह कहते हैं कि ओडिशा में कोविड मैनजमेंट कम्युनिटी बेस्ड है। सरकार ने पंचायत को ताकत दी। सरपंचों को डीएम का अधिकार दिया। वह फाइन कर सकते हैं। क्वारैंटाइन में नहीं रहने पर केस कर सकते हैं।

सीएम ने सभी सरपंचों से बात की। हमारे यहां 7 लाख सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं। इन्हीं में जरूरत के हिसाब से लोगों को भोजन बनाने का काम दिया। उन्हें प्रति थाली खाने पर 2 रुपए सीएम रिलीफ फंड से दिया गया।ओडिशा गरीब राज्य है, लेकिन कोविड मैनेजमेंट में गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली से विकसित राज्यों को पीछे छोड़ चुका है।

दरअसल, ओडिशा में आपदा प्रबंधन एक संस्कृति है। कोरोनाकाल में भी यहां 19 जून को राज्य के 30 जिलों के 1,500 स्थानों पर आपदा प्रबंधन का मॉक ड्रिल हुआ।ओडिशा में एक आपदा की आड़ में दूसरी तैयारी टाली नहीं जाती।

यहां परफेक्ट डाक्यूमेंटेशन होता है।बकौल जेना- एक्सपीरियंस काउंट्स, 20 साल की यह लर्निंग है। 1999 में सीएम नवीन पटनायक कोयला और स्टील मिनिस्टर थे। तूफान में हमारे 10 हजार लोग मारे गए थे। वह जब चीफ मिनिस्टर बने तो कहा...तूफान आएगा, जाएगा, लेकिन क्या यह जरूरी है कि इतने लोग मारे जाएं। आज स्थिति क्या है? बुलबुल, फनी, अम्फान...हमने एक साल में तीन तूफान झेले। जीरो कैजुअलिटी हुई। लोग बोलते हैं, हमारे सीएम बात नहीं करते।

संजय बताते हैं कि डिजास्टर टाइम अधिकारियों की जिंदगी तबाह कर देते हैं। मॉनिटर करते हैं। घोड़ा जॉकी का वेट नहीं देखता, उसका स्किल देखता है। इसीलिए आज कोविड में भी हमारे यहां मृत्यु दर 0.31% है। सिर्फ 26% एक्टिव मरीज हैं, उनमें भी अधिकांश हमारे वह श्रमिक बंधु हैं, जो लौटे हैं।

ओडिशा में कोरोना के खिलाफ लड़ाई फरवरी से ही शुरू हो गई थी। जबकि, उस समय यहां एक भी मरीज नहीं था।

आपदा प्रबंधन का ओडिशा मॉडल

  • ओडिशा में सबसे पहले डिजास्टर रिस्पांस फोर्स बनी। 2006 में नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स का गठन किया।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार सबसे पहले ओडिशा में बना, फिर दूसरे राज्यों ने इस मॉडल को अपनाया।

स्पेशलाइज्ड लोगों को स्पेशलाइज्ड काम दिया गया।

  • एम्पावरमेंट टूल : ओडिशा ने 13 मार्च को कोरोना को स्टेट डिजास्टर घोषित कर दिया। 14 मार्च को केंद्र सरकार ने यही काम किया।
  • ट्रेनिंग टूल : आईएएस अधिकारी अनु गर्ग को मार्च मध्य से अप्रैल मध्य तक 1 लाख मेडिकल और पैरा-मेडिकल स्टाफ को ट्रेनिंग की जिम्मेदारी दी गई।
  • कम्युनिकेशन टूल : ओडिशा स्किल डेवलपमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन सुब्रतो बागची को कम्युनिकेशन जिम्मा दिया गया।
  • रजिस्ट्रेशन अरेंजमेंट : लॉकडाउन 1.0 के बाद ही प्रवासी श्रमिकों का देश में सबसे पहले रजिस्ट्रेशन शुरू किया। अनुमान लगा लिया कि 8-8.5 लाख लोग आएंगे। ये लोग आएंगे तो कहां रहेंगे?

एडवांस प्लानिंग
फरवरी-मार्च में लॉकडाउन से पहले विदेशों से आए लोगों को ढूंढा गया। सेल्फ रजिस्ट्रेशन के लिए 15000 का इंसेटिव तक दिया गया। तकरीबन 4000 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया। सभी को होम क्वारैंटाइन किया गया। ग्राम पंचायत और अर्बन लोकल बॉडी उन्हें मॉनिटर करने लगे। 104 नंबर से कॉल किया गया, दिन में दो बार, चार बार...यदि जवाब नहीं मिला, तो फिर उन्हें लोकल पुलिस इंस्टिट्यूशनल क्वारैंटाइन सेंटर में भेजा गया।

पहला केस जाजपुर जिले में
जाजपुर जिले में दो-तीन केस मिले। पता चला कि सभी कोलकाता से आए हैं। फिर पूरे राज्य में कोलकाता से आए लोगों की खोज शुरू हुई। उन्हें क्वारैंटाइन किया गया। यह कारगर साबित हुआ, तो सभी ग्राम पंचायत में 30-50 बेड का क्वारैंटाइन सेंटर बनाने का फैसला हुआ। ओडिशा में 6798 ग्राम पंचायत हैं। इनमें 16828 से अधिक क्वारैंटाइन सेंटर बनाए गए। 7 लाख 68 हजार बेड उपलब्धहैं। यह सब प्रवासियों के आने के पहले हुआ।

ओडिशा मॉडल के चार स्तंभ-

  1. हर आपदा में जीरो कैजुअलिटी अप्रोच
  2. मैन व मैटेरियल की प्री-पोजिशनिंग
  3. तय टाइम फ्रेम में तैयारी को अंजाम
  4. टाइमली रिलीफ डिस्ट्रिब्यूशन


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ओडिशा में 6798 ग्राम पंचायत हैं, इनमें 16828 से अधिक क्वारैंटाइन सेंटर बनाए गए हैं।


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