सरकार सच को छिपा रही, मई के शुरुआत में ही चीन ने लद्दाख के कई सीमाई इलाकों पर कब्जा कर लिया था

लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून की रात को भारत-चीन सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद अब तक हालात सामान्य नहीं हुए हैं। गालवन घाटी में अब क्या स्थिति है?किसकी क्या तैयारियां हैं?विवाद कैसे और क्यों हुआ? यह हम पिछले 5दिनों से लगातार सुन और पढ़ रहे हैं। इस सबके बावजूद अभी कई सवाल अधूरे हैं।

रिटायर्ड आर्मी अफसर, पूर्व राजनयिक और सीनियर जर्नलिस्टइस पूरे मामले परअलग-अलग मत रख रहे हैं। कोई भारत को विजेता बता रहा है तो किसी कोचीनी सैनिकों के मारे जानेपर यकीन नहींहै। ये दावे भी सामने आ रहे हैं कि गलवान घाटी का एक बड़ा हिस्सा भारत खो चुका हैऔर सरकार जनता से सच छिपा रही है।

इस तरह की कईऔर बातें भी हैं, जो एक्सपर्ट्स लगातार ट्वीटर पर लिख रहे हैं। आइए पढ़तेहैं कि वे क्या लिख रहे हैं...

पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव का इशारा- नुकसान हमें हुआ है, चीन को नहीं

साल 2009 से 2011 के बीच विदेश सचिव रहीं निरुपमा राव लिखती हैं कि, "चीन हमेशा से खुद को पीड़ित पक्ष बताता रहा है और विवाद के लिए दूसरे पक्ष को जिम्मेदार ठहराता रहा है। खून से सने यह कुछ घंटे एक भयानक त्रासदी है। इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने के लिए 1976 से चल रहे प्रयास अब शून्य हो गए हैं।”

ब्रह्म चेलानी ने लिखा- सरकार ने गलवान घाटी को असुरक्षित छोड़ने की कीमत चुकाई
भारत सरकार के नीति सलाहकार समूह के सदस्य रह चुकेब्रह्म चेलानी 20 सैनिकों के शहीद होने का जिम्मेदार केंद्र सरकार को मानते हैं। उन्होंने लिखा कि, "चीन की रणनीतिक किताब कहती है कि चोरी से किसी दूसरे देश के इलाके पर कब्जा करो और दावा करो कि यह तो हमेशा से चीन का ही हिस्सा है। भारत को सोता हुआ देखकर चीन ने गलवान घाटी पर कब्जा किया और पहली बार इस इलाके पर अपना दावा जताया है।”

चेलानी आगेयह भी लिखते हैं कि 1962 के युद्ध के बाद से गलवान घाटी में चीन ने घुसपैठ नहीं की थी। भारत ने इस इलाके को असुरक्षित छोड़ बड़ी कीमत चुकाई है।

जिस दिन गलवान में झड़प का मामला सामने आया था। उस दिन चेलानी ने ट्वीट किया था, "अप्रैल के आखिरी और मई के शुरुआती हफ्ते में चीन ने भारत के हिस्से वाले लद्दाख क्षेत्र के कुछ खास सीमाई इलाकों में कब्जा कर लिया था। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, भारत के 647 स्क्वायर किमी इलाके पर चीन कब्जा कर रहा है।"

पूर्व राजनयिक केसी सिंह ने लिखा- विदेश मंत्री मुसीबत को भांप नहीं सके, अब क्या उम्मीदें रखें?
पूर्व राजनयिक केसी सिंहइस पूरे विवाद पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की दूरदर्शिता पर सवाल उठातें हैं। केसी सिंह ने इतिहास साझा करते हुए लिखा कि, “माओ की ग्रेट लीप फॉरवर्ड पॉलिसी 1962 में भयानक असफलता के साथ खत्म हुई थी। लाखों लोग भूख से मर चुके थे। चीन में माओ के नेतृत्व पर सवाल उठाए जाने लगे थे। शी जिनपिंग भी उसी तरह की मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। अगर चीन में भारत के पूर्व राजनयिक रहे और वर्तमान विदेश मंत्री यह नहीं देख सके और पीएम मोदी को सतर्क नहीं कर पाए, तो क्या उम्मीदें रखीजाएं?”

प्रवीण साहनी लिखते हैं- तनाव बढ़ने के बावजूद जवानों को बिना हथियार के भेजना सबसे बड़ी गलती
ड्रैगन ऑन अवर डोरस्टेपके लेखक और पूर्व आर्मी अफसर प्रवीण साहनी इस विवाद पर लिखते हैं कि, "भारतीय सेना के पास हथियार नहीं थे और ये बात चीनी सेना जानती थी। वे हमारे जवानों को मारने के लिए पूरी तरह तैयार थे। ये असंभव है कि फ्रंटलाइन के हमारे सैनिक आत्मरक्षा के लिए नदी में कूदेंगे, लेकिन हथियार नहीं उठाएंगे। सबसे ऊंचे स्तर पर बैठा कोई शख्स झूठ बोल रहा है। न तो चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल रावत और न ही विदेश मंत्री एस जयशंकर इस विवाद को पूरी तरह बयां कर सकते हैं।”

इस पूरे विवाद में अब एक बात पर बहस चल रही है कि क्या भारतीय जवानों के पास उस दौरान हथियार थे? और अगर नहीं थे तो उन्हें बिना हथियारों के चीनी सैनिकों के सामने क्यों भेजा गया? इस परविदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट करकहा था कि बॉर्डर ड्यूटी पर रहने वाले सैनिक हमेशा अपने साथ हथियार रखते हैं।

इस पर प्रवीण साहनी असहमति जताते हुए लिखते हैं कि, "अगर 15 जून को सैनिकों के पास हथियार थे तो उन्होंने आत्मरक्षा में इन्हें उपयोग क्यों नहीं किया? इंडियन आर्मी को यह साफ करना चाहिए।”

जवानों को हथियार न देकर उन्हें मरने के लिए छोड़ा गया
प्रवीण साहनी यह भी लिखते हैं कि आप अपने सैनिकों को आत्मरक्षा के लिए हथियारों के बिना सीमा पर नहीं भेजते। उन्हें हथियार न देकर आप उन्हें दुश्मन सेना के हाथों मरने के लिए छोड़ रहे हैं। सैनिक हमेशा आदेश मानते हैं। मिलिट्री हाईकमान को इस पर बहुत सारे जवाब देने हैं।

प्रवीण साहनी एक और ट्वीट मेंलिखते हैं कि, “पत्थरों से मारने की चीनी सेना की तैयारी बताती है कि सीमा पार की हाई लेवल अथॉरिटी ये जानती थी और उन्होंने इसकी इजाजत दी। 6 जून को एलएसी पर लेफ्टिनेंट जनरल और मेजर जनरल के बीच हुई बातचीत सौहार्दपूर्ण नहीं रही थी। हमें हमारे जवानों को बिना हथियारों के नहीं भेजना चाहिए था।”



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India China Border Situation | India China Border Dispute In Ladakh Galwan Valley/Latest News Update; Defense Analyst Brahma Chellaney


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